द गर्ल इन रूम 105–४६
लेकिन ज़ारा की सौतेली मां जैनब, उनके थोड़ा पीछे कुछ रिश्तेदारों के साथ खड़ी थी। जारा के पिता ने मुट्ठीभर मिट्टी उठाई और जारा के सिर के नीचे रख दी। मैंने ज़ारा के सौतेले भाई सिकंदर
को भी देखा, जो यूं तो बीस साल से ज़्यादा उम्र का था, लेकिन बच्चों जैसे अपने चेहरे के कारण बहुत कमउम्र लग रहा था। मैंने सिकंदर को इससे पहले केवल परिवार की तस्वीरों में देखा था। जारा के पिता, जो मूलतः श्रीनगर के थे, की बीवी की मौत तभी हो गई थी, जब ज़ारा केवल तीन साल की थी जब ज़ारा पांच की हुई, तो उन्होंने फरजाना नाम की एक बेवा से निकाह कर लिया। फरजाना के पहले खाविंद की मौत कश्मीरी आतंकवाद के कारण हो गई थी। सिकंदर उसी का बेटा था। जारा और सिकंदर सौतेले भाई-बहन की तरह बड़े हुए थे। आठ साल बाद, सफ़दर और फ़रज़ाना ने तलाक ले लिया। सफ़दर को पता चला था कि फ़रज़ाना के परिवार के आतंकवादियों से ताल्लुक हैं और सफदर को इस सबसे नफ़रत थी। दोनों अपने-अपने बच्चों को लेकर अलग हो गए। सफदर ने दिल्ली में कारोबार शुरू कर दिया। जारा उनके साथ दिल्ली चली आई। यहां उन्होंने अपनी अकाउंटेंट, जैनब से शादी कर ली। सिकंदर श्रीनगर में अपनी मां के साथ ही रहा।
सिकंदर जान की लाश के पास उंगलियों में उंगलियां फंसाए खड़ा था। उसने मिट्टी का एक गोला उठाया और उसे जारा की ठोड़ी के नीचे रख दिया। ऐसा करते हुए वह सुबकने लगा। अपने माता-पिता के अलगाव के बावजूद ज़ारा और सिकंदर एक-दूसरे के करीब थे। हालांकि सफदर को यह पसंद नहीं था। जारा ने मुझे बताया था कि सिकंदर पढ़ाई में अच्छा नहीं था इसलिए वह इम्तेहान पास
करने में उसकी मदद करती थी। जब जारा ने कश्मीर छोड़ा तो उसके बाद सिकंदर पांचवीं कक्षा से आगे पढ़ाई नहीं कर पाया। *मैं उम्मीद करती हूं कि सिकंदर सही-सलामत रहे। वो केवल एक बच्चा है,' जारा अकसर मुझसे कहा करती
थी। मैंने वहा पर जारा के पीएचडी गाइड प्रो. सक्सेना को भी देखा जो अपनी पत्नी के साथ यहां आए थे। वे आईआईटी में स्टूडेंट अफेयर्स के डीन भी थे। वे सफदर के पास गए और कुछ मिनट तक वे दोनों आपस में बात
करते रहे। प्रो. सक्सेना के जाने के बाद जारा के पिता ने रघु को बुलाया और उसे एक मुट्टी मिट्टी दी। जाहिर है, यह रस्म केवल परिवार के करीबी पुरुष सदस्य ही निभा सकते थे और सफदर रघु को परिवार का सदस्य मानते थे। रघु ने जारा के कंधों के नीचे मिट्टी रखी। मौलवी अरबी आयतें पड़ने लगे। मुझे फिर से रघु के लिए नफरत महसूस होने लगी। वो उस वक़्त उसके साथ क्यों था? मैं दूर से यह सब क्यों देख रहा था? क्या मैं जारा की लाश पर
मिट्टी नहीं डाल सकता था?
इसके बाद जारा के परिवार के पुरुषों ने उसकी लाश को कब्र में उतारा। मुझसे आगे खड़े लोगों के कारण में ठीक से देख नहीं पा रहा था, इसलिए मुझे भीड़ को धक्का देकर आगे आना पड़ा। मैंने मन ही मन ज़ारा के लिए
आखरी शब्द कहे- 'मुझे माफ़ कर देना, जारा, कि मैं हमारे रिश्ते को बचाने के लिए लड़ाई नहीं लड़ सका।' "क्या भाई?' सौरभ ने मुझे बड़बड़ाते हुए सुनकर पूछा।
"कुछ नहीं, मैंने कहा मेरा सिर झुका हुआ था ताकि वो मेरी गीली आंखें ना देख सके। "हम चलें? मुझे नहीं लगता वो लोग यहां पर हमारी मौजूदगी को लेकर सहज हैं।'
*मैं एक बार उसके पिता से मिल आऊं, फिर चलते हैं।' जारा की क़ब्र में मिट्टी डाली जा रही थी। सफ़दर करीब तीसेक साल के ऊंचे कद के एक शख्स से बात कर
रहे थे। वह आदमी एकदम तनकर खड़ा था और उसका चेहरा कश्मीरियों की तरह सुर्ख रंगत लिए हुए था। मैं
वहां गया और चुपचाप उनकी बात ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगा। एक बार फिर आपका शुक्रिया, फैज़ा तुम अपनी ड्यूटी छोड़कर यहां पर आए।"
"क्या बात कर रहे हैं. चाचा? हम एक परिवार के लोग हैं और जो हुआ, उससे हम सभी ग़मज़दा हैं, फैज़ ने
कहा।
सफ़दर ने सिर हिलाया और फ़ैज़ के जाने से पहले उसे गले लगा लिया। तब जाकर उनका ध्यान मुझ पर गया।
"तुम यहां पर कैसे?" 'मैं बस यहां पर अफ़सोस करने आया था, मैंने कहा। "तुम उस रात वहां पर थे। उसके कमरे में और इसके बावजूद तुम्हारी इतनी जुर्रत कि यहां आकर अफ़सोस